राजभाषा हिंदी और अनुवाद का अंतर्संबंध | Rajbhasha Hindi aur Anuvad ka Antarsambandh

 राजभाषा हिंदी और अनुवाद का अंतर्संबंध
Rajbhasha Hindi aur Anuvad ka Antarsambandh 



राजभाषा हिंदी और अनुवाद का अंतर्संबंध | Rajbhasha Hindi aur Anuvad ka Antarsambandh



             भाषा विचारों के आदान प्रदान का माध्यम होती है । भाषा जितनी सुबोध, सहज, सरल होगी भाव सम्प्रेषण उतना ही सफल और सशक्त  होगा । भारतीय भाषाओं की परंपरा में या उनके इतिहास में हिंदी का वही स्थान व महत्व है जो प्राचीन काल में संस्कृत का था। हिंदी करोड़ों लोगों की विचारवाहिनी भाषा है । भारत की आबादी का करीब आधा हिस्सा हिन्दी भाषी है और वह आपसी सम्प्रेषण के लिए हिंदी का प्रयोग करती है ।


     

     राजभाषा का अर्थ और उसका स्वरूप 


      शासन में कानून बनाने, आदेश निकालने, अध्यादेश जारी करने, प्रतिवेदन, ज्ञापन, सूचना प्रसारित करने, लेखा-जोखा तैयार करने, व्यावसायिक काम करने आदि के लिए जो भाषा अपनाई जाती है वस्तुतः उसी का नाम है राजभाषा ।



     कौटिल्य को भारतीय राजनीति का पितामह माना गया है । उनका ग्रंथ अर्थशास्त्र भारत के शासन विधान का आदिग्रंथ है।  राजपत्रों और उनकी भाषा के संबंध में कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में लिखा है कि शासन की भाषा में अर्थक्रम, संबंध, परिपूर्णता, माधुर्य, औदार्य, स्पष्टता इन छ: गुणों  का होना नितांत आवश्यक है ।



     अतः राजभाषा या प्रशासनिक हिंदी का स्वरूप साहित्यिक हिंदी की शैली –प्रवाह से अलग  प्रकार का होता है । राजभाषा न तो साहित्यिक भाषा की भांति भाव और अलंकार प्रधान होती है और न ही बोलचाल की भाषा के समान एकदम सरल । इसका मुख्य कारण यह है कि कार्यालय में प्रयुक्त हो रही भाषा में कार्यालयी संस्कार होता है और कार्यालय की विभिन्न कार्रवाइयों के लिए अलग शब्द निर्धारित होता है ।



     भारत में राजभाषा की सुदीर्घ परंपरा 




      हमारे देश में राजभाषा की एक सुदीर्घ परंपरा मिलती है । प्राचीन काल में काफी समय तक लगभग सम्पूर्ण भारतवर्ष की राजभाषा संस्कृत थी और इसके अलावा विभिन्न प्रदेशों, राज्यों में उनकी अपनी राजभाषा प्रचलित थी । 



    भारत में ग्यारहवीं-बारहवीं शताब्दी से ही हिंदी विस्तृत क्षेत्र में बोली जाती रही है । मुगल काल में फारसी राजभाषा के रूप में प्रतिष्ठित थी । अँग्रेजी राज के समय अँग्रेजी को राजभाषा के रूप में प्रतिष्ठित किया गया था । परंतु जनता के साथ संपर्क की भाषा सदा ही हिन्दी रही । 



    वर्ष 1757 में प्लासी के युद्ध में विजयी होने के उपरांत अंग्रेजों ने भारत में व्यापारी के साथ- साथ प्रशासक की भूमिका भी अदा करनी शुरू कर दी । ऐसे में अपने माल को बेचने के साथ-साथ लोगों पर शासन करने के लिए उन्होंने  भारतीय भाषाओं को सीखना शुरू किया । इसी के परिणामस्वरूप कलकत्ता में फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना की गई।  वहाँ भारतीय पंडित और मौलवियों की नियुक्ति इसलिए की गई कि वे अंग्रेज़ अफसरों को हिंदी सहित अन्य भारतीय भाषाओं का ज्ञान दे सकें ।


          ब्रिटिश शासन काल में भारत की राजभाषा अँग्रेजी थी । शासन का सारा कार्य अँग्रेजी में ही होता था । केंद्र और प्रांतीय सरकारों के बीच पत्र व्यवहार भी अँग्रेजी में ही होता था । 



    राजभाषा के रूप में हिंदी का विकास 




    1947 में भारत के स्वतंत्र होने के बाद यह अनुभव किया गया कि शासन का सारा कार्य देश की अपनी भाषा में हो । स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान हिंदी ने जनसम्पर्क में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । उसी समय से हिंदी को राजभाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने का प्रयास किया जा रहा था । 



    स्वातंत्र्योत्तर भारत में स्वाधीनता और स्वावलंबन के साथ-साथ स्वभाषा को भी आवश्यक माना गया । स्वतंत्रता प्राप्ति के तुरंत बाद गांधीजी ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि “प्रांतीय भाषा या भाषाओं के बदले में नहीं बल्कि उनके अलावा एक प्रांत से दूसरे प्रांत का संबंध जोड़ने के लिए सर्वमान्य भाषा की आवश्यकता है । ऐसी भाषा हिंदी या हिन्दुस्तानी ही हो सकती है।” 




    संविधान में राजभाषा हिंदी की स्थिति 




    राजभाषा के संबंध में संविधान सभा के सदस्यों ने काफी चिंतन-मनन किया। तदनुसार 14 सितंबर, 1949 को देवनागरी लिपि में लिखित हिंदी को संघ की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया ।


     राजभाषा के रूप में हिंदी के प्रयोग के तीन महत्वपूर्ण क्षेत्र है : 

    • 1. विधायिका
    • 2. कार्यपालिका 
    • 3. न्यायपालिका  

          भारतीय संविधान के अनुसार देवनागरी लिपि  में लिखी गई हिंदी को संघ की राजभाषा घोषित किया गया । सरकारी प्रयोजनों के लिए भारतीय अंकों के अंतरराष्ट्रीय रूप को मान्यता प्रदान की गई । साथ ही, 1965 तक अंग्रेजी भाषा का प्रावधान रखा गया । 


    संविधान द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए 1952 में राष्ट्रपति ने एक आदेश जारी किया जिसके अनुसार राज्यपालों तथा उच्च और उच्चतम न्यायालयों के न्यायाधीशों के नियुक्ति पत्रों के लिए अँग्रेजी के अतिरिक्त हिंदी और अंतरराष्ट्रीय अंकों के साथ देवनागरी अंकों का प्रयोग अधिकृत किया गया । 




    तीन वर्ष पश्चात अर्थात 1955 में एक और आदेश जारी किया गया । जिसके अनुसार जनता के साथ पत्राचार करने, प्रशासनिक रिपोर्ट सरकारी पत्रिकाओं, संसदीय रिपोर्ट, संकल्प, हिंदीभाषी राज्यों के साथ पत्राचार, संधियों और करारों में,  विभिन्न देशों की सरकारों और सरकारी दूतों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ संपर्क साधने में हिंदी का प्रयोग भी अधिकृत किया गया । 



    इसी क्रम में राष्ट्रपति द्वारा सन 1960 में जारी तीसरे आदेश में वैज्ञानिक, प्रशासनिक और कार्यविधि प्रयोजनों के लिए हिंदी शब्दावली के विकास, प्रशासनिक और कार्यविधि संबंधी सामग्री के लिए हिंदी अनुवाद और भारत सरकार के कर्मचारियों के लिए हिंदी प्रशिक्षण का प्रावधान किया गया । 




    राजभाषा संबंधी सांविधानिक और कानूनी व्यवस्थाओं का अनुपालन सुनिश्चित करने एवं संघ के सरकारी कामकाज में हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए गृह मंत्रालय, भारत सरकार के एक स्वतंत्र विभाग के रूप में जून 1975 में राजभाषा विभाग की स्थापना की गई ।  



          राजभाषा संकल्प, 1968 के अनुपालन में राजभाषा हिंदी के प्रसार और विकास की गति को बढ़ाने के लिए तथा संघ के विभिन्न राजकीय प्रयोजनों में इसके प्रगामी प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए राजभाषा विभाग प्रतिवर्ष एक वार्षिक कार्यक्रम जारी करता है । 



    वार्षिक कार्यक्रम में निम्नलिखित बिन्दु विशेष रूप से विचारणीय हैं- संसदीय राजभाषा समिति की रिपोर्ट पर जारी किए गए राष्ट्रपति के आदेशों का मंत्रालयों/विभागों/कार्यालयों द्वारा अनुपालन किया जाए; कंप्यूटर, ई-मेल, वेबसाइट सहित उपलब्ध सूचना प्रौद्योगिकी सुविधाओं का अधिक से अधिक उपयोग  करते हुए हिंदी में कम को बढ़ाया जाए, संबंधित विभाग वैज्ञानिक व तकनीकी साहित्य हिंदी में छपवाकर उसे जनसाधारण के उपयोग हेतु उपलब्ध करवाने हेतु आवश्यक उपाय करे; हिंदी टंकण-आशुलिपि संबंधी प्रशिक्षणकार्य में तीव्रता लाएं ताकि तत्संबंधी लक्ष्यों को निर्धारित समय-सीमा में प्राप्त किया का सके ।




     राजभाषा हिंदी के विकास में अनुवाद की भूमिका 






          किसी एक भाषा की पाठ्य सामग्री का दूसरी भाषा की पाठ्य सामाग्री में रूपाँतर  अनुवाद कहलाता है । आज अनुवाद प्रयोजन की  दृष्टि से बहुमुखी और बहुआयामी बन चुका है।  


    भारत में राजभाषा हिंदी के विकास में अनुवाद ने एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया है और अनुवाद की यह प्रक्रिया निरंतर जारी है ।



     राजभाषा अधिनियम, 1963 (1967 में यथा संशोधित) में यह प्रावधान किया गया है कि संविधान के प्रारम्भ से पंद्रह वर्ष की कालावधि की समाप्ति हो जाने पर भी संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए और संसद में प्रयोग के लिए हिंदी के अतिरिक्त अँग्रेजी भाषा का प्रयोग यथावत जारी रहेगा । 



    अर्थात् आज भारतीय संविधान में राजभाषा के रूप में द्विभाषिकता की स्थिति है । आज राजभाषा हिंदी के साथ-साथ अँग्रेजी सह-राजभाषा बन गई है।  राजभाषा हिंदी का विकास अनुवाद के माध्यम से हो रहा है क्योंकि आज़ादी के पहले अँग्रेजी राजभाषा थी और आजादी के तुरंत पश्चात हिंदी को राजभाषा के रूप में तत्काल लागू कर पाना न तो संभव ही था और न ही व्यवहार्य ।




     स्वतन्त्रता से पूर्व राजभाषा के रूप में हिंदी का कोई अस्तित्व ही नहीं था बल्कि वह केवल एक संपर्क भाषा के रूप में  प्रचलित थी ।  ऐसी परिस्थितियों में राजभाषा के रूप में हिंदी का विकास पूर्णरूपेण अँग्रेजी से हिंदी में अनुवाद पर निर्भर हो गया और प्रशासनिक रूप में या राजभाषा के रूप में हिंदी का कोई स्वतंत्र अस्तित्व निर्मित नहीं हो पाया । 





    आज हिन्दी राजभाषा बन चुकी है लेकिन इसका स्वतंत्र विकास धीरे-धीरे ही संभव हो सकता है क्योंकि केंद्र सरकार के कार्यालयों में आज भी अधिकांश दस्तावेज़ पहले अंग्रेजी में ही तैयार किए जाते हैं  फिर उनका हिंदी में अनुवाद किया जाता है । यही कारण है कि प्रशासनिक कार्यों में हिंदी में मौलिक रूप से मसौदे तैयार करने या टिप्पण लेखन के स्थान पर इनके अनुवाद का प्रयोग किया जाता है ।


    निष्कर्ष 


          राजभाषा अधिनियम, 1963 (1967 में यथा संशोधित) पारित होने के बाद द्विभाषिकता की स्थिति कायम होने पर अनुवाद के आधार पर राजभाषा हिंदी या दूसरे शब्दों में प्रशासनिक हिंदी का विकास हुआ ।

     अनुवाद पर आश्रित भाषा पहले कृत्रिम लगती थी  । प्रशासनिक हिंदी में नई भाषा शैली और नई शब्दावली विकसित हुई । अनुवाद में सरलता का आग्रह बढ़ा तथा प्रचलित शब्दों के प्रयोग के लिए प्रयास किए गए । साहित्यिक भाषा के रूप में विकसित हिंदी तथा व्यावसायिक भाषा के रूप में अनुवाद के आधार पर विकसित हिंदी की  अभिव्यंजना में अंतर का शुरू में आम जनता ने स्वागत नहीं किया तथा इसे हिंदी भाषा की सहज स्वाभाविक प्रकृति के प्रतिकूल माना । लेकिन बाद में इसे स्वीकार किया जाने लगा कि सरलता के आग्रह के कारण अनुवाद में किसी भी तथ्य को इस तरह प्रस्तुत नहीं किया जा सकता कि उसके निर्वचन में विसगतियाँ उत्पन्न हो । 


    चूंकि प्रशासनिक कार्यों की भाषा वस्तुपरक और संदर्भ मूलक होती है, अतः अनुवाद की भाषा में निर्णय संप्रेषित करने की क्षमता होनी चाहिए । अनुवाद पर आश्रित या आधारित प्रशासनिक हिंदी के प्रचलन में राजभाषा प्रबंधन की भूमिका उपयोगी हो सकती है क्योंकि प्रबंधन में इसकी सीमा और संभावनाओं को प्रभावशाली ढंग से उजागर किया जा सकता है । लेकिन कुल मिलाकर यह कहना उचित होगा कि राजभाषा हिंदी तथा अनुवाद का भाषिक सरोकार घनिष्ठ हो रहा है ।



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