अनुसंधान का अर्थ, स्वरूप और विशेषताएं | Anusandhan Ka Arth, Swarup Aur Visheshtaen
अनुसंधान का अर्थ, स्वरूप और विशेषताएं
Anusandhan ka arth, swarup aur visheshtaen
‘अनुसंधान’ के लिए अनेक पर्यायवाची शब्दों का प्रयोग किया जाता
है, जिनमें ‘अन्वेषण’ और ‘शोध’ प्रमुख हैं ।
अँग्रेजी में ‘रिसर्च’ शब्द का प्रयोग किया गया है, जिसका अर्थ ‘अन्वेषण’ है । (अन्वेषण = खोजना, ढूँढ़ना)
वस्तुतः
अनुसंधान की परिभाषा में यह अर्थ है कि जो संधान (संधान का अर्थ है दिशा) के लिए
हो, जिसमें खोजना और प्रमाणित करना हो । ‘शोध’ शब्द का प्रयोग अब ‘रिसर्च’
के अर्थ में होने लगा है । जब किसी भी साहित्य या विज्ञान या समाज विज्ञान के
सृजनात्मक स्वरूप का मूल्याँकन होता है और नई व्याख्या की जाती है तब उसे अनुसंधान
कहा जाता है । डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी और
डॉ. नगेंद्र ने अनुसंधान को परीक्षण या समीक्षण भी
कहा है ।
डॉ नगेंद्र ने ‘अनुसंधान का स्वरूप’ शीर्षक के अंतर्गत अनुसंधान की परिभाषा करते हुए कहा है – “संधान का अर्थ
है दिशा और अनु का अर्थ है पीछे । इस प्रकार अनुसंधान का अर्थ किसी लक्ष्य को
सामने रखकर अपने अभिप्राय की ओर बढ़ना है ।”
लुंडबर्ग के शब्दों
में – “अनुसंधान वह है जो अवलोकित तथ्यों के संभावित वर्गीकरण, सामान्यीकरण और सत्यापन करते हुए पर्याप्त रूप में वस्तु विषयक और
व्यवस्थित हो ।” इससे स्पष्ट है कि अनुसंधान में नवीन तथ्यों और सिद्धांतों की खोज
की जाती है।
अनुसंधान का अर्थ
अनुसंधान
अत्यंत व्यापक परिवेश को व्यक्त करता है, जिसके अनेक अर्थ
हैं; इन अभिप्रायों को इस प्रकार रखा जा सकता है :
1.1 अन्वेषण में अज्ञात वस्तु का ज्ञापन होता है और किसी
भी रचना के अभिप्राय को समझने का प्रयास किया जाता है ।
1.2 अनुसंधान में परीक्षण निहित है, जिसमें उपलब्ध सामग्री की जाँच-पड़ताल की जाती है ।
1.3 अनुसंधान में संधान निहित है, जिसके अनुसार प्राप्त सामग्री के सृजनात्मक अभिप्रायों को प्रमाणित किया
जाता है ।
‘अनुसंधान’ शब्द को ‘शोध’ के पारिभाषिक अर्थ में ही प्रयुक्त करना अत्यंत तर्कसंगत और वैज्ञानिक है
।
कृपया इसे भी देखें : 1.अनुसंधान के मूल तत्व
अनुसंधान का स्वरूप
अनुसंधान के स्वरूप को निर्धारित करने वाले
प्रमुख तत्व निम्नानुसार हैं :
2.1 अनुसंधान
में ज्ञात से अज्ञात की ओर जाना पड़ता है, क्योंकि अज्ञात
जिसमें अज्ञात लेखक और ग्रंथ सम्मिलित हैं, अन्वेषण के
अंतर्गत आते हैं ।
2.2 अनुसंधान
में ऐसी सामग्री भी होती है, जिसमें अस्तित्व का ज्ञान होते
हुए भी उसकी उपलब्धि नहीं हो पाती । इस प्रकार के अन्वेषण का भी व्यापक क्षेत्र होता
है ।
2.3 नवीन
तथ्यों के अन्वेषण के द्वारा प्रचलित तथ्यों का संशोधन भी अनुसंधान के अंतर्गत आता
है । पाठानुसंधान में इस प्रकार का अन्वेषण होता है ।
2.4 अनुसंधान
में किसी भी विचारधारा या सिद्धान्त के विकासक्रम को निर्धारित करना आवश्यक है ।
इसमें निरीक्षण और परीक्षण तभी हो सकता है जबकि वैज्ञानिकता का निर्वाह करते हुए
भी शोधार्थी अपने मूल्यों का निर्धारण विभिन्न परिकल्पनाओं (अनुमान, चिंतन-मनन) के आधार पर करे । इसके लिए व्याख्या की भी आवश्यकता है जिसमें
विषय से संबद्ध गंभीर अध्ययन भी आवश्यक है।
2.5 विषय
से संबंध शैली या रूपविधान विषयक अन्वेषण भी भावपरक अन्वेषण के समान ही प्रासंगिक
और अनिवार्य है । व्याख्या और मौलिकता के बिना अनुसंधान नहीं हो सकता । अतएव अनुसंधान
के लिए ये सभी तत्व अनिवार्य हैं, जो उसके स्वरूप को ही व्यक्त
करते हैं।
अनुसंधान
का व्यापक अर्थ ही उसके स्वरूप का निर्धारक होता है । अनेक शब्दकोशों और शोध
विशेषज्ञों ने अनुसंधान की जो परिभाषाएँ दी हैं, वह उसके
स्वरूप का ही निर्धारण है ।
अनुसंधान की प्रमुख विशेषताएं
अनुसंधान के पारिभाषिक स्वरूप के
माध्यम से ही उसके तत्व निर्धारित किए जाते हैं और उनके आधार पर ही अनुसंधान के
स्वरूप का विवेचन होता है । अनुसंधान एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है और इसका संबंध
व्यापक रूप से सभी प्रकार के उपलब्ध साहित्य से है । अनुसंधान का क्षेत्र अत्यंत
व्यापक है और उसमें जो प्रक्रिया निहित है उसके आधार पर अनुसंधान की प्रमुख
विशेषताएं निम्नानुसार हैं:
3.1 अनुपलब्ध तथ्यों का
अन्वेषण : अनुसंधान में हमारे पूर्व अर्जित ज्ञान के आधार पर
किसी विषय के संबंध में उसके आगे अभी तक अप्रकाशित और अप्राप्त तथ्यों का अन्वेषण
किया जाता है ।
3.2 उपलब्ध तथ्यों अथवा
सिद्धांतो का पुनर्विवेचन : किसी विषय
से संबद्ध उपलब्ध ज्ञान के आधार पर भी उस विषय के संबंध में गलत तथ्यों के निवारण
के लिए भी उनका नये ढंग से विवेचन और स्थापन आवश्यक है । शोधार्थी समस्त
पूर्वाग्रहों से दूर रहकर किसी रचनाकार के साहित्य का वैज्ञानिक ढंग से विवेचन
करता है ।
3.3 ज्ञान क्षेत्र की
सीमाओं का विस्तार अर्थात् मौलिकता की उद्भावना (कल्पना करना, जन्म देना) :
अनुसंधान में प्रस्तावित विषय से संबंधित मौलिकता की उद्भावना
अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि जिस विषय पर कार्य हो गया है
उसी की पुनरावृत्ति और विषय-वस्तु का अनेक स्थलों से चयन कर उसे नियोजित करना ही
शोध नहीं है, जब तक वह उस विषय से संबद्ध ज्ञान की सीमा का
विस्तार नहीं करता ।
3.4 संरचना : अनुसंधान में संरचना का व्यापक महत्व है । वह तथ्यपरक
हो, क्योंकि विषय और अनुसंधान का घनिष्ठ संबंध होता है और शिल्प या संरचना से
ही वस्तुस्थिति स्पष्ट हो पाती है ।
अनुसंधान का व्यापक क्षेत्र
अनुसंधान का क्षेत्र अत्यंत
व्यापक है और साहित्य के साथ ही सामाजिक और वैज्ञानिक अनुसंधान का अंतर्संबंध होता
है । साहित्य का अनुसंधान अपनी विशिष्टताओं के बावजूद सामाजिक और वैज्ञानिक
अनुसंधान से जुड़ा रहता है, क्योंकि उसमें सामाजिक घटनाओं और
समस्याओं को ही शामिल किया जाता है । अतः साहित्य में किसी भी समस्या को हल करने
के लिए सामाजिक परिकल्पना (अनुमान, चिंतन-मनन) की आवश्यकता
होती है । अनुसंधान किसी भी क्षेत्र में हो उसमें वैज्ञानिकता अत्यंत आवश्यक है ।
निष्कर्ष
अनुसंधान
के स्वरूप के इस विश्लेषण से यह निष्कर्ष निकलता है कि अनुसंधान एक व्यापक
प्रक्रिया है, जिसमें परिकल्पनाओं (अनुमान, चिंतन-मनन) के आधार पर वैज्ञानिक प्रणालियों का प्रयोग किया जाता है
जिससे किसी भी रचना का परीक्षण करना संभव हो सके ।
अनुसंधान
के स्वरूप को निर्मित करते हुए यह स्पष्ट है कि :
1. अनुसंधान अपने विश्लेषण के
माध्यम से नये तथ्यों को जन्म देता है ।
2. शोध अवधारणा को परिभाषित करती है
।
3. अनुसंधान में किसी भी अवधारणा को
अस्वीकृत करने के बजाय उसे फिर से निर्मित किया जाता है और इसमें अनुसंधानकर्त्ता
आधुनिक से आधुनिक साधनों का प्रयोग करता है, जिससे कि वैज्ञानिक
आधार पर नई परिकल्पनाओं का निर्माण किया जा सके ।
साहित्य
के अनुसंधान में भी सामाजिक और वैज्ञानिक अनुसंधान के समान व्यावहारिक दृष्टिकोण
अपनाना आवश्यक है तभी एक विशेष समस्या पर ध्यान केन्द्रित हो सकता है ।
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