राम की शक्ति पूजा की व्याख्या भाग-3 | Ram ki Shaktipuja ki Vyakhya | Part-3

 

राम की शक्ति पूजा की व्याख्या भाग-3
Ram ki Shaktipuja ki Vyakhya | Part-3

राम की शक्ति पूजा की व्याख्या भाग-3 Ram ki Shaktipuja ki Vyakhya | Part-3


भाग-3

लौटे युग दल। राक्षस-पद-तल पृथ्वी टलमल,

बिंध महोल्लास से बार-बार आकाश विकल।

वानर-वाहिनी खिन्न, लख निज-पति-चरण-चिन्ह

 चल रही शिविर की ओर स्थविर-दल ज्यों विभिन्न,

 प्रशमित है वातावरण, नमित-मुख सान्ध्यकमल

लक्ष्मण चिन्ता-पल पीछे वानर-वीर सकल,

रघुनायक आगे अवनी पर नवनीत-चरण,

 श्लथ धनु-गुण है, कटि-बन्ध स्रस्त-तूणीर-धरण,

 दृढ़ जटा-मुकुट हो विपर्यस्त प्रतिलट से खुल

 फैला पृष्ठ पर, बाहुओं पर, वक्ष पर, विपुल

 उतरा ज्यों दुर्गम पर्वत पर नैशान्धकार,

 चमकती दूर तारायें ज्यों हों कहीं पार।


सन्दर्भ - प्रस्तुत पंक्तियां छायावादी कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' द्वारा रचित 'राम की शक्ति पूजा' से ली गई हैं। मूल रूप से यह कविता उनके काव्य संग्रह 'अनामिका' में संकलित है।


प्रसंग - सूर्यास्त हो जाने पर आज का युद्ध स्थगित हो गया। राक्षसों एवं वानरों की सेनाएं अपने-अपने शिविर की ओर लौट रही हैं। वानर सेना में हताशा है, जबकि राक्षसों का पलड़ा भारी रहने के कारण राक्षस सेना में उत्साह है। राम के हृदय में निराशा छाती जा रही है। रावण को जीत न पाने की निराशा उनके सारे व्यक्तित्व पर छा गई है। इन पंक्तियों में निराला ने राम की इसी निराशा की अभिव्यक्ति करते हुए अन्तःप्रकृति एवं बाह्य प्रकृति का सामंजस्य दिखाया है।

 

व्याख्या - आज का युद्ध स्थगित होने पर दोनों सेनाएं अपने-अपने शिविर की ओर लौट पड़ीं। आज राक्षसों की सेना ने प्रबल पराक्रम दिखाकर वानर सेना के छक्के छुड़ा दिए थे इसलिए लौटती हुई राक्षस सेना अपने भारी-भारी कदमों से पृथ्वी को कम्पायमान करती हुई चल रही थी। उनके कोलाहल से एवं उत्साह भरे हुए स्वरों से आकाश व्याकुल था।

 

दूसरी ओर वानर सेना खिन्न थी। वे अपने मुख को झुकाए हुए उदास भाव से अपने सेनापति के चरण चिह्नों को देखते हुए अपने शिविर की ओर लौट रहे थे। वानर सेना टुकड़ियों में बंटी हुई दुखी एवं उदास लग रही थी। उसे देखकर ऐसा लगता था मानो यह योद्धाओं का समूह न होकर बौद्ध भिक्षुओं का समूह हो जो जीवन से उदास एवं दुखी है।

 

वातावरण शान्त है। लक्ष्मण का मुख सांध्यकालीन मुरझाए हुए कमल की तरह झुका हुआ है। वे चिन्तित दिखाई दे रहे हैं तथा उनके पीछे वानर वीर चुपचाप धीरे-धीरे चल रहे हैं।

राम अपनी सेना के आगे-आगे पृथ्वी पर अपने मक्खन जैसे कोमल चरण धीरे-धीरे रखते हुए आगे बढ़ रहे हैं। युद्ध क्षेत्र से लौटते समय उनके धनुष की डोरी शिथिल कर दी गई है, कमर बन्द अपने स्थान से खिसका हुआ है, जो तरकश को बांधे रहता था। युद्ध क्षेत्र जाते समय राम अपनी जटाओं को मुकुट की तरह सिर पर बांध लेते थे, किन्तु अब युद्ध से लौटते समय जटाओं का वह दृढ़ मुकुट खुल गया है तथा बालों की प्रत्येक लट खुल गई है और उनके वक्ष पर, बाहुओं पर, पीठ पर बिखर गई है ।

 

काले केशों से आवृत्त राम का वह शरीर ऐसा लग रहा था मानो दुर्गम पर्वत पर रात्रि का अन्धकार छा गया हो। बाहर का यह अंधेरा राम के हृदय में भी निराशा के रूप में छाता जा रहा है। वे इसलिए निराश हैं, क्योंकि रावण को अभी तक परास्त नहीं कर सके हैं तथा उनके बाण भी कारगर सिद्ध नहीं हो पा रहे हैं।

 

निराशा के इस सघन अन्धकार में आशा की एक किरण उसी तरह चमक रही है जैसे रात के अंधेरे में दूर दो तारे चमक रहे हों। ठीक इसी प्रकार बालों से घिरे राम के चेहरे पर आँखों की दो पुतलियां चमकती हुई निराशा में आशा का संचार कर रही थीं।

 

विशेष : (1) राम की निराशा का चित्रण इन पंक्तियों में कवि ने प्रतीकात्मक शैली में किया है। अन्धकार निराशा का प्रतीक है तथा तारे-आशा का प्रतीक हैं।

 

(2) भाषा में बिम्ब सम्प्रेषण की क्षमता विद्यमान है। श्लथ, स्रस्त, विपर्यस्त जैसे शब्दों से शिथिलता एवं उदासी का भाव व्यक्त हो रहा है।

 

(3) विराट बिम्ब की योजना इन पंक्तियों में है। राम के शरीर को दुर्गम पर्वत तथा निराशा को अन्धकार के रूप में कल्पित करते हुए उत्प्रेक्षा अलंकार का विधान किया गया है।

 

(4) राम की शक्तिपूजा में अन्तः एवं बाह्य प्रकृति का सामंजस्य दिखाया गया है। वातावरण चित्रण से राम की निराशा को अभिव्यक्ति मिली है।

 

(5) निराशा के क्षणों में आशा की एक किरण निराला के काव्य में सर्वत्र मिलती है, क्योंकि चरम निराशा तो मृत्यु की बोधक है। आशा ही जीवन की गतिशीलता को बनाए रखती है। इसीलिए यहाँ गहन अन्धकार में दो तारे चमक रहे हैं तथा बालों से ढके मुख पर राम की आँखों की दो पुतलियां चमक रही हैं।

 

(6) ताराएं - श्लेष अलंकार - तारे, पुतलियां दो अर्थ व्यक्त हो रहे हैं।

 

(7) पृथ्वी और आकाश का मानवीकरण प्रारम्भिक पंक्तियों में है, क्योंकि पृथ्वी को कांपते हुए तथा आकाश को व्याकुल दिखाया गया है।

 

(8) भावानुकूल भाषा का प्रयोग है। इस अवतरण की भाषा अपेक्षाकृत सरल है तथा वह प्रसाद गुण से युक्त है।

 

(9) छायावादी भाषा-शिल्प का प्रयोग इन पंक्तियों में है।

 

(10) स्थविर दल ज्यों विभिन्न में उत्प्रेक्षा अलंकार का प्रयोग किया गया है ।

 

(11) नमित मुख सांध्य कमल में उपमा अलंकार का प्रयोग है।

 

(12) बौद्ध भिक्षुओं के मुख पर जो उदासी, दुख व्याप्त रहता है वही लौटती हुई वानर सेना में दिखाई दे रहा है। अतः यह उपमान अत्यन्त सार्थक है।

 

कोई टिप्पणी नहीं

Please do not enter any spam link in the comment box.

Blogger द्वारा संचालित.